Friday 27 March 2015

चारभुजा मंदिर छत्रवन(छाता)

…मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आया हूँ -- मुझे और कौन लायेगा?

आप अक्सर व्रज-मण्डल का भ्रमण करते रहते थे, व श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों का दर्शन करते थे। 

एक बार ऐसे ही आप व्रज-मण्डल का भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते आप व्रज-मण्डल के खदिर वन में आए। वहाँ छत्रवन के समीप उमराओ गाँव है। वहाँ पर श्रीकिशोरी कुण्ड है। आपको भगवद्-प्रेम के अद्भुत भाव हुए श्रीकिशोरी कुण्ड के दर्शन करके। 

कुछ दिन वहीं श्रीहरिनाम (हरे कृष्ण महामन्त्र) किया। वहाँ निर्जन स्थान पर भजन करते-करते अचानक आपके मन में इच्छा हुई की आप श्रीराधा-कृष्ण जी के विग्रहों की सेवा करें। 

जैसे ही इच्छा हुई, तत्क्षण, भगवान स्वयं वहाँ आये, आपको विग्रह (मूर्ति) दिये व कहा कि ये 'राधा-विनोद' हैं। इतना कह कर भगवान अदृश्य हो गये।

आप विग्रहों का ऐसा प्राकट्य देख कर हैरान रह गये। जब होश सम्भाला तो चिन्ता करने लगे कि इन विग्रहों को कौन दे गया है?
तब श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह हँसे व आप पर मधुर नज़र डालते हुये बोले - मैं इसी उमराओ गाँव के किशोरी कुण्ड के किनारे रहता हूँ। तुम्हारी व्यकुलता देखकर मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आया हूँ -- मुझे और कौन लायेगा? अब मुझे भूख लगी है। शीघ्र भोजन खिलाओ।
यह सुनकर आप के दोनों नेत्रों से आँसु बहने लगे। तब आपने स्वयं खाना बनाकर, श्रीराधा-विनोद जी को परितृप्ति के साथ भोजन कराया व बाद में पुष्प शैया बनाकर उनको सुलाया। नये पत्तों द्वारा आपने ठाकुर को हवा की व मन लगाकर ठाकुर के चरणों की सेवा की। आपने तब मन और प्राण भगवान के चरणों में समर्पित कर दिये।

आप श्रीकृष्ण्चैतन्य महाप्रभु जी के साक्षात् शिष्य और पार्षद हैं।
आप ही श्रीकृष्ण लीला में लीला मंजरी हैं, व श्रीगौर लीला में श्रीलोकनाथ गोस्वामी हैं।

आपने लगभग 1510 सम्वत् में आषाढ़ी कृष्णा अष्टमी को तिरोधान लीला की। 

वृन्दावन में श्रीराधा-गोकुलानन्द मन्दिर में आपका समाधि मन्दिर है। 

श्रीलोकनाथ गोस्वामी जी द्वारा सेवित श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह भी आजकाल श्रीगोकुलानन्द मन्दिर में सेवित होते हैं।

श्रील लोकनाथ गोस्वामी जी की जय !!!!!!

आपके तिरोभाव तिथि-पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!

(अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ द्वारा प्रकाशित तथा इस संस्था के वर्तमान आचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी द्वारा रचित, 'श्रीगौरपार्षद एवं गौड़ीय वैष्णव-आचार्यों के संक्षिप्त चरितामृत' से)

Thursday 26 March 2015

चारभुजा मंदिर छत्रवन(छाता)

उस के साथ रहते रहते हमें चाहत सी हो गयी;
उससे बात करते करते हमें आदत सी हो गयी;
एक पल भी न मिले तो न जाने बेचैनी सी रहती है;
दोस्ती निभाते निभाते हमें मोहब्बत सी हो गयी।

http://www.charbhujamandirchhata.blogspot.in/